कोरोना की वजह से राहत शिविर खाली हो रहा, पर लोग अपने घरों में लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे

पुराना मुस्तफाबाद। इस इलाके में कब्रिस्तान से बिल्कुल सटी हुई एक ईदगाह है। यह ईदगाह बीते एक महीने से ऐसे सैकड़ों लोगों की पनाहगाह बनी हुई है, जो फरवरी में यहां भड़के दंगों के दौरान बेघर हो गए थे। ऐसे लोगों को आश्रय देने के लिए तब दिल्ली सरकार और वक्फ बोर्ड ने मिलकर ने इस ईदगाह में राहत शिविर स्थापित किया था। दिल्ली में हुए दंगों को अब एक महीना पूरा हो चुका है। लेकिन इस राहत शिविर में पनाह लेने वाले कई शरणार्थी अब तक भी अपने घर वापस लौटने की स्थिति में नहीं आ सके हैं। अब कोरोना की महामारी के चलते जब पूरे देश में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन घोषित हो चुका है तो इस राहत शिविर को भी खाली करवाया जा रहा है। ऐसे में यहां रह रहे तमाम लोगों की स्थिति कोढ़ में खाज जैसी बन पड़ी है।


इस राहत शिविर में रहने वाले अधिकतर लोगों के घर इस कदर जल चुके हैं कि रहने लायक नहीं बचे हैं। कुछ लोगों ने तो बीते दिनों में किराए के मकान खोज लिए हैं, लेकिन अब कोरोना के डर से अधिकतर मकान मालिक भी अपने मकान किराए पर देने में घबरा रहे हैं। ऐसे में यहां रह रहे दंगा पीड़ित अब खुद भी नहीं जानते कि अगर उन्हें इस राहत शिविर से भी निकाल दिया गया तो वे कहां जाएंगे। मुस्तफाबाद के बीचों-बीच स्थित ये राहत शिविर कई त्रासद कहानियां समेटे हुए है। हालांकि पहली नजर में देखने पर यहां का माहौल किसी मेले जैसा नजर आता है। बड़े-बड़े रंग-बिरंगे तंबू, लाइन से लगी कैनोपी, हर कैनोपी के बाहर भीड़ लगाए खड़े लोग, जगह-जगह तैनात नागरिक सुरक्षा के जवान, रंग-बिरंगे पुराने कपड़ों के ढेर, उसके आस-पास दौड़ते छोटे बच्चे और बच्चों का पीछा करती उनकी माएं।